Friday, May 6, 2011

गांधी का क्या अपराध था?

मृगेंद्र पांडेय

हवा तेज चलने को तैयार तो है, लेकिन रास्ते उसे रोक रहे हैं। दो अक्टूबर को गांधी जी को लोग नमन करने के बाद विदाई दे चुके हैं। हम भी विदाई देने की तैयारी कर रहे हैं। सब कुछ ठीक रहा तो नए दौर के गांधी की योजना पर काम किया जा सकता है। एक ऐसा गांधी जो न तो सोचता है, न बोलता है। जिसके पास न तो आगे जाने के रास्ते हैं, न पीछे लौटने पर कोई ठिकाना। हमारे डाक्टर साहब कहते हैं कि वो आदमी ही क्या जो अपना कमिटमेंट पूरा न कर सके। फिर हम कैसे किसी ऐसे गांधी को स्वीकार कर लेंगे, जो न सोचता हो, न बोलता हो।

आखिर ऐसे गांधी की किस समाज को जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ में सलवा जुडूम को बंद करने का राज्य सरकार को निर्देष दिया। सरकार की क्या मजाल जो कोर्ट के आदेष-निर्देष को न मानें। लेकिन बिना बोलने वाली सरकार की गलतियां कम ही लोग आंक पाते हैं। अंधे-बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है। यह मैं नहीं भगत सिंह ने कहा था।

तो क्या प्रदेष में रहने वाले लोग, राजनेता, अधिकारी अंधे बहरे हो गए हैं। या फिर अंधे बहरे बने रहने में ही भला समझ रहे हैं। गांधी जी को भी उस समय दुख हुआ होगा, जब दंतेवाडा में उन्हीं के आश्रम को सरकार के नुमाइंदों ने तोड दिया था। अब उसी सरकार के नुमाइंदों ने गांधी के नाम का सहारा लेना षुरू कर दिया है। पता है बापू के नाम पर सौ खून मांफ। तो लग गए गांधी को भूनाने की फिराक में। अब नक्सलियों के खिलाफ गांधीवादी तरीके से विरोध करना है। इसमें वही लोग षामिल हो रहे हैं, जो कभी सलवा जुडूम का झंडा उठाकर बडी बडी बातें किया करते थे।

भगवा और लाल में ज्यादा अंतर नहीं होता है। अब तो बाद गणवेष को बदलने तक की होने लगी है। यह एक षुरुआत है। कहीं ऐसा न हो कि प्रदेष की भाजपा सरकार अपने झंडे में कमल के बदले गांधी का चरखा न षामिल कर ले। अब बस्तर में गांधीवादी तरीके से नक्सलियों का विरोध होगा।

जय गांधी! सही काम में न सही, कम से कम इन लोगों ने गलत काम में तो आपके नाम का उपयोग करना षुरू कर दिया। अयोध्या के फैसले का पता होता तब भी क्या गांधी के नाम का इस्तेमाल किया जाता।


आजकल रायपुर में राजस्थान पत्रिका के साथ आ गया हूं। सोचा गांधी जी पर कुछ लिखू तो लिख दिया। वैसे यहां गांधी जयंती के दिन 200 लोग जहरीला भोजन खाने के बाद बीमार हो गए। यही सच्चाई है। अब हम इसे बरदाश्त करें या झेले। हमारी मर्जी।

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