Monday, November 22, 2010

हम कब सॊचेंगे

मृगेंद्र पांडेय

मैं गांव गया था। किसी दोस्त की शादी थी। पिछले साल दिसंबर का महीना था। जल्द ही एक बार फिर से आ जाएगा दिसंबर। हमारे गांव में थोड़ी-थोड़ी ठंड शुरू हो जाती है। हमारे रायपुर में दिसंबर आने को है, लेकिन ठंड ने दस्तक तक नहीं दी। बनारस के पास गाजीपुर रोड पर हमारा गांव बर्थरा कला है। मुझे याद है कि हमारे गांव में किसी भी व्यक्ति ने कोई बड़ा काम नहीं किया। बड़ा काम का मतलब ऐसा जो राष्ट्रीय चरित्र का हो। ऐसा काम जिसे लोग याद करने के लिए हमारे गांव को याद करें। यह मैं अपने गांव की बुराई नहीं कर रहा हूं। जब भी मैं अपने गांव के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि हमारे गांव को कुछ और आगे होना चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे रायपुर से ठंड के मामले में आगे है।

रायपुर राजधानी है। बनारस को भी राजधानी बनाने की तैयारी चल रही है। मायावती के तीन प्रदेश के कांसेप्ट को अगर केंद्र सरकार मान लेगी तो पूर्वांचल की राजधानी बनारस की होगी। बनारस भी बहुत बड़ा है। एक बार तो उत्तर प्रदेश सरकार ने उसे काटकर तीन जिले बना दिए। सोचों इतना बड़ा जिला था हमारा बनारस। इसी जिले के सबसे दूर के इलाके से एक आदमी रात ११ बजे बनारस में आया। हम लोग भी पहुंचे थे। यूपी कालेज के बाजू में चांदमारी अस्पताल में सांप काटने का इलाज होता है। यूपी कालेज राजा उदय प्रताप सिंह के नाम पर रखा गया है। यहां के लिए प्रचलित है कि ठाकुर ही अध्यक्ष बनेगा। वैसे इस मिथक को एक ब्राह्मण ने तोड़ दिया। शायद उसे लोग बाबा बुलाते थे। बिहार में ब्राह्मणों को बाबा बोला जाता है। खैर भटककर बिहार पहुंचने से पहले चांदमारी वापस लौटते हैं।

दिसंबर की ठंडी रात। भाई साहब की सफारी गाड़ी में हम पांच लोग सवार थे। दो लोगों को और बठाने की बात आई तो लोगों ने नाक भौं सिकोडना शुरू कर दिया। बोल रहे थे कि बैठेंंगे कहां। रात को रामधनी चाचा को सांप ने काट लिया था। हम लोग उनको दिखाने चांदमारी जा रहे थे। जैसे ही हम चांदमारी पहुंचे, डाक्टर ने रामधनी चाचा को कमरे में डाल दिया। बाकी लोगों को बोला कि आप लोग बाहर बैठें। हम सभी लोग बाहर आ गए। थोड़ी देर में एक गाड़ी आई। गाड़ी थी टाटा ४०७। गाड़ी से एक-एक करके लोग बाहर निकलने लगे। थोड़ी देर में गाड़ी से ४६ लोग बाहर निकले। यह सभी पीछे बैठे थे। गाड़ी में आगे सिर्फ ड्राइवर, गांव के सरपंच और उनके दो चेले बैठे थे।

हम सभी लोग देखकर दंग रह गए। उनसे पूछा कि कहां से आए हो। उसमें से एक आदमी ने थोड़ी अलग-विचित्र भाषा में बताया कि सोनभद्र से आए हैं। हमने उससे पूछा कि सोनभद्र में कहां से आए हैं, तो उसने कुछ बताया। हम लोग समझ नहीं पाए। उससे पूछे कि यहां क्यों आए हो। उसने बोला कि गांव के एक आदमी को सांप काट लिया है। हमने बोला कि बनारस से कितनी दूर है आप लोगों का गांव। उन्होंने बताया कि ३६० किलोमीटर। मैं पूछा कि क्या कोई अस्पताल नहीं है। तो पता चला कि सांप के काटे का इलाज सिर्फ चांदमारी में ही होता है।

हम लोग दंग थे। सोच रहे थे कि अच्छा हुआ सोनभद्र में पैदा नहीं हुए। नहीं तो गांव के ४६ लोगों के साथ आना पड़ता। ऐसा इसलिए क्योंकि उन लोगों ने बताया कि अगर यह व्यक्ति मर जाएगा तो उसे गंगा में बहाना पड़ेगा। इसके लिए केले का पेड़ भी वो लोग साथ लाए थे। हम लोग थोड़ी देर तक बात करते रहे। इतने में रामधनी चाचा को होश आ गया और हम चल दिए। यह सोचते हुए कि क्या हम ऐसे प्रदेश में रहने के लिए हैं, जहां लोगों को दवा न मिल सके। लोगों को कानून से न्याय न मिल सके। आप लोगों को बताना चाहूंगा कि चाणक्य ने कहा था कि उस देश को छोड़ देना चाहिए जहां न्याय और दवा न मिले।

(बहुत दिनों बाद कुछ लिख रहा हूं। शायद आप लोगों को गैप अच्छा न लगे। लेकिन अब कोशिश है कि लगातार लिखूं। क्योंकि मैं रायपुर आ गया हूं। यहां लिखने के लिए बहुत कुछ है। नक्सल से लेकर दो रुपए किलो का चावल तक।)

Wednesday, May 26, 2010

पैसा बचाने के 10 तरीके

ऐसे बहुत से लोग है जिनकी आमदनी अच्छी-खासी है, लेकिन उन्हे पता भी नहीं चलता और आश्चर्यजनक ढंग से उनका पैसा समाप्त हो जाता है, जबकि बहुत से काम और अगली आमदनी के कई दिन बाकी रहते हैं। यह सिर्फ आपकी जेब...ऐसे बहुत से लोग है जिनकी आमदनी अच्छी-खासी है, लेकिन उन्हे पता भी नहीं चलता और आश्चर्यजनक ढंग से उनका पैसा समाप्त हो जाता है, जबकि बहुत से काम और अगली आमदनी के कई दिन बाकी रहते हैं। यह सिर्फ आपकी जेब में छेद होने से ही नही, आपकी गलत आदतों का भी परिणाम होता है। जानिए बचत के कुछ टिप्स-

[1. बाहर खाने से बचें]
अगर बार-बार बाहर खाने की आपकी आदत हो, तो कोशिश करके इससे बचें। बाहर का खाना जहां महंगा होता है, वहीं नुकसानदेह भी। आपका बजट अक्सर इससे भी गड़बड़ाता है।
[2. यात्रा व्यय पर नियंत्रण]
अगर आपके शहर में बस की बेहतर सुविधा उपलब्ध है, तो रोज ऑटो या टैक्सी पकड़ने के स्थान पर बस से आने-जाने की आदत डालें।
[3. चाय-कॉफी पर नियंत्रण]
आजकल ज्यादातर कार्यालयों में कर्मचारियों के लिए डिस्पेंसिंग मशीन चाय-कॉफी के लिए लगी होती है। मशीन वाली चाय-कॉफी पीना अपनी आदत बनाएं। बाहर से ऑर्डर पर ऐसी चीजें बार-बार लेने से, पता तो नहीं चलता पर पैसा काफी खर्च हो जाता है।
[4. लंच लेकर जाएं]
आजकल ऐसे इलेक्ट्रिक टिफिन आ रहे है जिनमें रखा खाना आप खाने से पहले चंद मिनटों में गरम कर सकते है। कुछ कार्यालयों में माइक्रोवेव होते है या किचेन में खाना गर्म करने की व्यवस्था होती है। इसे अपनाकर भी आप पैसा बचा सकती है।
[5. शॉपिंग पर नियंत्रण]
पैसा हाथ में आते ही यह जरूरी नहीं कि आप शॅापिंग पर निकल पड़े। इससे बेहतर होगा कि आप पहले आवश्यक सामान की लिस्ट बनाएं और उन्हे ही खरीदें।
[6. घर पर सौंदर्य की देखरेख]
आमतौर पर समय या श्रम को बचाने के लिए बाल धोने तक के लिए आप पार्लर चल देती है। यदि छोटे-मोटे काम घर पर ही कर लें तो आप बहुत सा पैसा बचा पाएंगी।
[7. सस्ता विकल्प देखें]
बहुत दिखावे वाले अत्यंत महंगे रेस्तरां में डिनर करने से जहां तक हो सके बचें। जरूरी नहीं कि महंगे होटलों व रेस्तरां में ही खाना अच्छा होता है, कई छोटे रेस्तरां भी सफाई व क्वालिटी का ध्यान रखते है।
[8. रिंगटोन लोड न करे]
बहुत से लोग मोबाइल हाथों में होने पर अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाते। उनके हाथ लगातार सक्रिय रहते है और इसीकारण वे अक्सर जाने-अनजाने नई से नई रिंगटोन लोडकर अपना बिल बढ़ाते रहते है।
[9. फिल्म देखनी हो तो]
यदि फिल्म देखनी हो, तो सीडी या डीवीडी लाकर घर पर फिल्म देखें। आज यदि दो लोग भी थियेटर पर फिल्म देखने जाते है, तो चार-पांच सौ रुपए खर्च हो जाते हैं। आप चाहें, तो किसी वीडियो लाइब्रेरी से सीडी लाकर भी फिल्म देख सकती हैं।
[10. यात्रा में बचत]
जब भी वीकएंड या किसी यात्रा पर जाना हो, तो कॉमिक या नॉवल घर से ले जाएं। लंबी यात्रा पर रास्ते में महंगी किताब खरीदने से बचेंगे और अपना पैसा बचा पाएंगे।
याद रखिए बूंद-बूंद से सागर बनता है। आप भी अपने सागर को बृहद बनाने की तरफ प्रयास कर सकती है।

Wednesday, May 19, 2010

विमल की आस्ट्रेलिया से खास तस्वीरें





विमल की खास तस्वीरें






"मेरे बारे में कोई राय कायम मत करना, मेरा वक्‍त बदलेगा तुम्‍हारी राय बदलेगी"

Monday, January 4, 2010

जीने के चार पल

दिल्ली से लौटने के बाद लगता है कि जयपुर आकर ही गलत किया। आफिस में कदम रखते ही निराशा ने घेर लिया। मेरे बॉस हरिश्चंद्र जी ने कहा कि जिस शहर में जाओं, जब उसे छोड़ों तो लोग बोले कि कोई आया था। बड़ा दम था लड़के में। अपनी एक पहचान हो। ऐसा न हो कि कुछ समय बाद यह सोचों कि आखिर जयपुर आया ही क्यों था और तुम्हारे पास कोई जवाब न हो। इससे निकलने से पहले ही कुछ ऐसा मिल गया, जिसे बताए बिना रहा नहीं जा रहा है।
मृगेंद्र पांडेय

जीन में चार चीजें ठीक वैसे ही आती है जैसे हर साल बिना रुके, बिना भूले बरसात। जैसे हम बरसात को नहीं रोक सकते वैसे ही अपने इन चार जीवन साथी को भी नहीं रोक सकते। आप सोच रहे होंगे कि ये जीवन साथी कैसे हो गए। दरअसल ये चारों चीजें जीवन साथी से भी ज्यादा समय तब आपके साथ रहते हैं। या ये कहा जा सकता है कि आपको इनके साथ रहना ही पड़ता है।

जीवन जीने के अपने तरीके होते हैं। कोई किसी पर यह नहीं थोप सकता कि वह फलां तरीके से जीवन जीए या फिर फलां तरीके से। लेकिन ये चार चीजें आपके जीवन को अपने तरीके से जीने पर मजबूर करती हैं। आखिर अब तक आप यह सोच रहे होंगे कि चार चीजों की बातें तो यह लगातार कर रहा है लेकिन उनके बारे में बता नहीं रहा है। तो फिर मेरा फर्ज बनता है कि मैं उन चार चीजों के बारे में आपको बता दूं, फिर आगे बढूं।

जितना आप काम करते हैं अगर उसके बराबर आपको रिटर्न नहीं मिलता है तो फिर आप निराश होते हैं। अगर चीजें आपके प्लान के अनुसार नहीं होती है तब आपको निराशा मिलती है। असफलता से निपटना सच में कठिन है, लेकिन इससे निपटने के बाद आदमी पहले से ज्यादा ताकतर हो जाता है। क्योंकि असफलता हमको यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर हम असफल क्यों हुए। अगर इसका जवाब हमें मिल जाता है तो मानों आप सफल हो गए। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो निराशा की बहन फ्रस्टेशन के साथ मुकाबला हॊता है।

फ्रस्टेशन को हिंदी में हम कुंठा, नैराश्य कह सकते हैं। यह तब होता है कि चीजें फंसने लगती है। आपको आगे बढ़ने से हर कदम पर रोकती हैं। यही कारण है कि आपमें एक नकारात्मक ऊर्जा आती जाती है, जो खतरनाक होती है। इसके अलावा अन्याय, कपट और अकेलापन भी आपको लगातार अपनी जद में लेने की फिराक में होता है। ऐसा नहीं है कि इनसे निपटा नहीं जा सकता। इन चार चीजों से निपटने के लिए जीन में चार चीजें ही जरूरी है। अगर इसे एक शब्द में कहें तो उसे बैलेंस कहा जा सकता है। यह बैलेंस आपके रिलेशनशीप, आपके स्वास्थ्य, आपकी मानसिक शांति और सब कुछ ठीकठाक क्रम में होने से मिल सकता है।

(चेतन भगत को आप सभी जानते होंगे। कुछ दिनों पहले ही मैं उनके ब्लाग पर कुछ पढ़ रहा था उस दौरान उनकी एक स्पीच पढ़ा। उस स्पीच को जितना मैं समझ पाया इस लेख में उड़ेल दिया हूं। यह बातें मैं अपने भाई विमल को बताया तो उसने कहा कि मेल करना, तो मुझे लगा कि इसे ब्लाग पर भी लिखा जा सकता है। विमल इन दिनों आस्ट्रेलिया में है।)